
कार्तिक मास की पांचवीं कहानी–पथवारी माता की कहानी
बहुत समय पहले की बात है। किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी, उसके चार बेटे थे। बुढ़िया ने चार ही भैंसे पाल रखी थीं। कार्तिक मास आने पर बुढ़िया ने अपनी चारों बहुओं को बुलाया और कहा कि मैं तो कार्तिक स्नान करने जा रही हूँ, तुम चारों एक–एक भैंस रख लो, मैं जब कार्तिक स्नान करके वापस लौटूंगी तो देखूंगी कि किसने सबसे ज्यादा घी रखा है। ऐसा कहकर बुढ़िया कार्तिक स्नान के लिए चली गई। उन चारों बहुओं में से सबसे छोटी बहू बुढ़िया की बहुत लाडली थी। बुढ़िया के जाने के बाद तीनों बहुओं ने सोचा कि छोटी बहू को नीचा दिखाने का यही मौका है, छोटी बहू को कुछ भी नहीं आता था। छोटी बहू ना तो दही जमाना जानती थी और ना ही उसे घी निकालना आता था। तीनों बड़ी बहुओं ने जानबूझ कर उसे कुछ भी नहीं बताया जिससे कि उसे अपनी सास से डांट खानी पड़े।

तीनो जेठानियाँ घी बनाने में जुट गईं लेकिन छोटी बहू को कुछ नहीं आता था तो वह सारा दूध और दही पीपल की पथवारी में गिरा देती थी। छोटी बहू बहुत सीधी मन से भोली थी। महीना पूरा होने पर उसकी तीनों जेठानियों ने एक–एक डिब्बा घी का भर कर रख लिया था, लेकिन छोटी बहू ने जरा सा भी घी नहीं निकाला था। बुढ़िया के आने का समय हो गया था। अपनी सास के आने की खबर सुनकर वह पथवारी माता से कहती है कि मैं क्या करूं? मैने तो सारा दूध और दही यहां गिरा दिया था। अब मेरी सास मुझसे घी के लिए पूछेंगी तो मैं क्या कहूंगी?
पथवारी माता ने छोटी बहू से कहा कि तुम ये चार कंकड़ ले जाओ और चार खाली डिब्बों में रख देना इससे चारों डिब्बे घी से भर जाएंगे। उसने पथवारी माता के कहे अनुसार वैसा ही किया और उसके पास चार डिब्बे घी हो गया। जब बुढ़िया घर आई तो उसने आते ही उसने चारों बहुओं को बुलाकर कहा कि लाओ अपना-अपना घी दिखाओ कि किसने कितना घी बनाया है? तीनों जेठानियाँ अपना–अपना घी का डिब्बा ले आई और मन ही मन खुश होने लगी कि अब छोटी बहू को सास से डाँट पड़ेगी। छोटी बहू आई तो साथ में चार डिब्बे घी भी लाई, तीनों बहुएं ये देख के हैरान हुई कि इसे तो दही बिलौना भी नहीं आता था तो यह घी कहाँ से आया। वह अपनी सास से कहने लगी कि जरुर इसके पति ने यह घी खरीदा है। सास के पूछने छोटी बहू ने कहा कि मुझे तो कुछ भी नहीं आता था और ना ही मुझे किसी ने बताया कि किस तरह से दही बिलोकर घी बनाया जाता है। मैं तो सारा दूध पीपल में सींच देती थी और दही पथवारी पर चढ़ा देती थी। यह तो पथवारी माता की कृपा का प्रभाव है।
छोटी बहू की सारी बातें सुनकर सारी बहुओं ने कहा कि अगर पथवारी माता को सींचने से इतना अधिक पुण्य मिलता है, तो हम भी अगले साल उसे सींचेंगे और कार्तिक स्नान करने जायेंगे। हे पथवारी माता! जैसे आपने छोटी बहू की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना।
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