Ahoi Ashtami Vrat Katha And Pooja Vidhi In Hindi.

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

अहोई अष्टमी के दिन स्त्रियों को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शुभ मुहूर्त में पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं। एक कलश में जल भरकर पूजा स्थल पर रख दें। रोली और चावल से अहोई माता की पूजा करें। अब अहोई माता को मीठे पुए या फिर आटे के हलवे का भोग लगाएं। अब हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें। फिर शाम के समय तारे निकलने के बाद अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें।

अहोई अष्टमी की कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार दंपति थे। उनके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सारी बहुएं और साहूकार बेटी मिट्टी लाने के लिए में जंगल गईं थीं। बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याह (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी खोदते समय साहूकार की बेटी की खुरपी से गलती से स्याहू का एक बच्चा मर गया। इसपर स्याहू क्रोध में आकर बोली कि मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी।


स्याहू की बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी अपनी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सबसे छोटी भाभी पूरी निष्ठा से सुरही गाय की सेवा करती है। सुरही गाय उसकी सेवा से प्रसन्न होती है, और उसे स्याहू के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगती हैं। अचानक साहुकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है। यह देखकर वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है। वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। इसपर छोटी बहू कहती है कि उसके बच्चे को सांप डंसने जा रहा था, उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश हो जाती है और सुरही सहित उन्हें स्याहू के पास पहुंचा देती है। स्याहू छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएं होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है। 

अहोई अष्टमी का मतलब यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।

जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निस दिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।।
जय अहोई माता॥

ब्राह्मणी, रूद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य–चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।।
जय अहोई माता॥

माता रूप निरंजन सुख-संपत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।।
जय अहोई माता॥

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म–प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।
जय अहोई माता॥

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।।
जय अहोई माता॥

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खानपान का वैभव तुम बिन नहीं आता।।
जय अहोई माता॥

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दुश तोकू कोई नहीं पाता।।
जय अहोई माता॥

श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
जय अहोई माता॥

Follow our other website kathakahani

Post a Comment

Previous Post Next Post