Sheetla Mata Ki Vrat Katha Aur Pooja Vidhi.

शीतला माता की कहानी सुनने से पहले आइए हम जानते हैं कि शीतला माता का  व्रत करने से हमें क्या फल प्राप्त होता है तथा शीतला माता का व्रत कैसे करना चाहिए और शीतला माता को प्रसाद में क्या चढ़ाना चाहिए।

चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला माता का पूजन किया जाता है। शीतला सप्तमी को भोजन बनाकर रख दिया जाता है और दूसरे दिन उसी भोजन को प्रसाद के रूप में खाते हैं।

शीतला माता की कहानी:

बनडाली नाम के एक गांव में एक औरत अपनी दो बहुओं के साथ रहती थी, उसकी दोनों बहुओं के एक–एक पुत्र था।  उसकी बड़ी बहू बहुत लड़ाका और गुस्से वाली तथा सबसे जलन रखने वाली थी जबकि छोटी बहू बहुत संस्कारी और प्रेम व्यवहार वाली थी।

एक बार जब शीतला सप्तमी का दिन आया तो उस औरत ने अपनी बहुओं से भोजन बनाने को कहा बड़ी बहू ने साफ मना कर दिया तब उसने छोटी बहु को भोजन बनाने को कहा छोटी बहू को भोजन तैयार करने में रात हो गई इतने में उसका बच्चा रोने लगा तो वह भोजन को बीच में ही छोड़कर बच्चे को दूध पिलाने के लिए लेट गई दिन भर की थकान की वजह से उसको नींद आ गई और चूल्हा जलता ही रह गया।

रात्रि में शीतला माता भ्रमण करते–करते छोटी बहू के घर आई और चूल्हे में लोटने लगीं जिससे शीतला माता का पूरा शरीर जल गया जिससे शीतला माता क्रोधित हो गईं और उन्होंने छोटी बहू को श्राप दिया कि जैसे मेरा शरीर जला है वैसे तेरा पेट जले। सुबह उठ कर बहू ने देखा कि चूल्हा जल रहा था और उसका बच्चा मर गया था, बच्चे का पूरा शरीर जला हुआ था। यह देखकर छोटी बहू जोर जोर से रोने लगी, वह समझ गई कि शीतला माता के क्रोध से ही यह सब हुआ है। उसकी सास ने जब यह देखा तो वो भी बहुत दुखी हो गई उसने बहू को कहा की वो शांत हो जाए इस तरह रोने से कुछ नहीं होगा।


शीतला माता फिर से सब कुछ ठीक कर देंगी तू उनके पास जा। यह सुनकर छोटी बहू ने अपनी सास का आशीर्वाद लिया और अपने मरे हुए बच्चे को डालिया में रखकर घर से निकल पड़ी। रास्ते में बहू को एक तालाब मिला तालाब में पानी तो बिलकुल लबालब भरा हुआ था एक तालाब से दूसरे तालाब में समाता रहता था परंतु कोई भी पशु–पक्षी, जीव–जंतु इसका पानी नही पीता था। गलती से भी कोई उस तालाब का पानी पी लेता था तो उसकी मृत्यु हो जाती थी। छोटी बहू को वहां से जाते देखकर दोनों तालाबों ने कहा कि तुम कहां जा रही हो, तब छोटी बहू ने बताया कि शीतला माता ने मुझे श्राप दिया है मैं उनसे क्षमा मांगने के लिए जा रही हूं तब दोनों तालाबों ने कहा कि बहन हमारे तालाब का पानी कोई नहीं पीता है और अगर कोई पी लेता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। हमने कौन सा पाप किया है कृपया उसका निवारण भी तुम शीतला माता से पूछ लेना। छोटी बहू ने कहा कि मैं जरूर पूछ लूंगी।

छोटी बहू जब और आगे गई तो उसे दो सांड मिले जिनके गले में पांठ बंधी हुई मिली ये दोनो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे। छोटी बहू को देख कर दोनों ने पूछा कि बहन तुम कहां जा रही हो तो उसने कहा मैं शीतला माता के पास अपने श्राप का निवारण पूछने जा रही हूं तब दोनों सांड बोले कि बहन हम हमेशा आपस में लड़ते रहते हैं अगर आपको शीतला माता मिल जाए तो कृपया उनसे हमारे पाप का निवारण भी पूछ लेना छोटी बहू ने कहा कि मैं आपके पाप का निवारण भी पूछ लूंगी।

आगे जाने पर एक बुढ़िया एक बेर की झाड़ के नीचे अपने बिखरे बालों को दोनों हाथों से खुजला रही थी उसने छोटी बहू को देखते ही कहा कि इधर आ कहां जा रही है और इस टोकरे में क्या है, छोटी बहू ने बुढ़िया को अपना दुखड़ा कह सुनाया परंतु बुढ़िया ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने स्वार्थ की बात करते हुए कहा अरे बेटी जरा मेरा सर देख दे मेरे सर में बहुत जुएं हो गए हैं बहू ने बुढ़िया की गोद में अपने मरे हुए बच्चे को दे दिया और बुढ़िया के सर से जुएं निकालने लगी।

बुढ़िया के सर से जब सारी जुएं निकल गईं तो उसकी खुजली मिट गई तो उसको सर में ठंडक मिल गई तो उसने बहू को आशीर्वाद दिया कि जैसे मेरा सर ठंडा हो गया है वैसे ही तेरा पेट भी ठंडा हो जाए। उसी समय शीतला माता की कृपा से एक चमत्कार हुआ बुढ़िया की गोद में पड़ा बच्चा जीवित हो गया छोटी बहू समझ गई कि वो बुढ़िया शीतला माता ही हैं छोटी बहू उनसे पैरों में गिरकर क्षमा मांगने लगी।

फिर छोटी बहू ने दोनों तालाबों के पाप का निवारण पूछा तो शीतला माता ने कहा कि बेटी ये दोनों पूर्व जनम में तोतन थीं और दोनों आपस में लड़ा करती थी उन दोनों ने कभी किसी की मदद नहीं की अब तू उन दोनों तालाबों का पानी पी लेना जिससे उनके पापों का निवारण हो जायेगा। उसके बाद छोटी बहू ने दोनों सांडो के श्राप का निवारण पूछा तो शीतला माता ने कहा कि बेटी ये दोनों पिछले जनम में देवरानी–जेठानी थीं दोनों आपस में बहुत लड़ाई किया करती थीं इसलिए उन्हें इस जनम में सांड का जन्म मिला है तू उनके गले से घटी के पाट खोल देना जिससे उनके पापों का नाश हो जायेगा और दोनों मिल जुलकर रहने लगेंगी।

छोटी बहू सबके पापों का निवारण पूछ कर खुशी खुशी वापस लौट आई रास्ते में उसे दोनों सांड मिले बहू ने उनके गले से घटी के पाट खोल दिए और उनका झगड़ना बंद हो गया। वहां से आगे जाने पर उसे दोनों तालाब मिले तो छोटी बहू ने दोनों तालाबों का पानी पी लिया जिससे उनका पानी अमृत के समान मीठा हो गया। फिर छोटी बहू बच्चे को लेकर अपने घर आ गई उसके बच्चे को जीवित देखकर सास बहुत खुश हो गई परंतु जेठानी ने अपना मुंह बना लिया। अंदर आकर छोटी बहू ने देखा कि उसका घर अन्न धन से भरा हुआ है। जब जेठानी को ये सब पता चला तो उसने सोचा कि अगले साल मैं भी देवरानी के जैसा ही करूंगी।

उसने सब कुछ उसी प्रकार से किया जैसे देवरानी से गलती से हो गया था। शीतला माता से श्राप मिलने के बाद वह जब बच्चे को लेकर निकली तो रास्ते में उसे वही दो तालाब मिले उन्होंने जब उससे पूछा कि कहां जा रही हो तो उसने कहा तुमसे क्या मतलब, आगे जाने पर दोनों सांड मिले उन्होंने पूछा कि बहन कहां जा रही हो तो उसने कहा देखती नहीं हो मेरा बच्चा मर गया है मैं शीतला माता के पास इन्हे जीवित कराने के लिए ले जा रही हूं। सांडो ने कहा कि हमारा भी एक काम कर देना पर जेठानी ने मना कर दिया।

आगे जाने पर उसे बुढ़िया मिली बुढ़िया ने उससे कहा की बेटी तू मेरे सर से जुएं निकाल दे तब जेठानी ने उसको झिड़क दिया और कहा कि देखती नहीं मेरा बेटा मर गया है। सारा दिन वह अपने मरे हुए बच्चे को लेकर घूमती रही लेकिन उसे शीतला माता नहीं मिलीं। बुढ़िया के रूप में आई हुई शीतला माता को वह पहचान नहीं पाई और अपने बुरे और झगड़ालू स्वभाव की वजह से उसने किसी की मदद भी नहीं की। वह रोती हुई अपने घर लौट आई बुराई और धोखे का फल हमेशा बुरा ही मिलता है अपने लालच और ईर्ष्या की वजह से उसे अपने बच्चे को भी खोना पड़ा।

शीतला माता ने जैसे छोटी बहू की गलतियों को क्षमा किया उसी प्रकार सबकी गलतियों को भी माफ करे

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