Mahashivratri Aur Sawan Maas Ki Shivratri Ki Vrat Katha Aur Mahatav.

महाशिव रात्रि का त्योहार कब मनाया जाता है:

शिवरात्रि साल में दो बार आती है।  पहली शिवरात्रि फाल्गुन के महीने में आती है तो दूसरी शिवरात्रि श्रावण मास में मनाई जाती है।  जो शिवरात्रि फाल्गुन के महीने में आती है उसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।  महाशिवरात्रि पर देवों के देव महादेव की पूजा कर भक्त व्रत रखते हैं।  कहते हैं कि श्रावण मास की शिवरात्रि में भगवान शिव ने अमृत मंथन के दौरान निकले हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इसी विष की तपन को शांत करने के लिए इस दिन सभी देवताओं ने उनका जल और पंचामृत से अभिषेक किया था। इसलिए भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। इसी के कारण  श्रावण शिवरात्रि मनाई जाती है।  हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है । महाशिवरात्रि जगत में रहते हुए मनुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है।  इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। फाल्गुन मास में पड़ने वाली  महाशिवरात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इस दिन शिवजी ने अपने वैराग्य जीवन को त्याग कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जी के भक्त इस दिन उनकी शादी का उत्सव मनाते हैं।

पान, सुपारी, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, घी, दही, दूध, शहद, चीनी, लौंग, इलायची, बेलपत्र, धतूरा और प्रसाद तथा दक्षिणा रात को भगवान का जागरण करना चाहिए। शिवजी का भोग लगाकर सबको प्रसाद बांटे।


शिवरात्रि की कथा:

शिवरात्रि के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है। एक बहेलिया था जो प्रतिदिन जीवों को मारकर अपने परिवार का पालन किया करता था।  एक दिन बहुत प्रयास के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिल पाया तो वह भूख प्यास के व्याकुल होकर एक तालाब के किनारे बैठ गया।  उसी जगह पर एक बेल का पेड़ था और उसके नीचे शिवलिंग स्थापित था, शिकार की तलाश करने के लिए बहेलिया उसी वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया उसने बेलपत्र को तोड़ तोड़ कर शिवलिंग को ढक दिया, बहेलिया दिन भर से भूखा था इस तरह बेलपत्र चढ़ाने से उसका शिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया।

कुछ रात बीत जाने पर एक हिरनी वहां आई, वह गर्भवती थी बहेलिया उसे मारने के लिए खड़ा हो गया। भयभीत होकर हिरनी ने कहा हे बहेलिए मैं अभी गर्भवती हूं, मुझे प्रसव वेदना भी हो रही है इसलिए इस समय मुझे मत मारो, मैं बच्चे को जन्म देने के बाद जल्दी ही आ जाऊंगी। बहेलिया उसकी बातों में आ गया। कुछ समय बाद वहां एक दूसरी हिरनी आई बहेलिए के निशाना साधते ही उसने भी निवेदन किया कि अभी अपने पति से मिलने जा रही हूं, उनसे मिलने के बाद मैं स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊंगी बहेलिए ने उसकी बात मान ली। फिर रात्रि की तीसरी पहर में एक तीसरी हिरनी अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ वहां पानी पीने के लिए आई तो बहेलिए ने उसे मारने के लिए धनुष और बाण उठा लिया तब वह हिरनी रोते हुए बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ आऊं तब मुझे मार देना। बहेलिए ने उसके ऊपर तरस खा कर उसे भी छोड़ दिया। प्रातः काल में एक हष्ठ पुष्ट हिरण उसी तालाब पर आया बहेलिए उसको मारने के लिए तत्पर हो गया तब उस हिरण ने बहेलिए से विनती की कि हे बहेलिए यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरणियो को मारा है तो मुझे भी मार दो लेकिन यदि तुमने उन तीनो को छोड़ दिया है तो मुझे भी छोड़ दो मैं उनका सहचर हूं मैं उनसे मिल आऊं तब मुझे मार देना।

बहेलिया जिसका मन दिन भर उपवास और रात भर जागरण करके पवित्र हो गया था और उसका हृदय निर्दयता से कोमलता में बदल गया था भगवान शंकर की भक्ति के प्रभाव से उसने हिरण के वापस लौट कर आने पर भी उसको ना मारने का निश्चय कर लिया। वह पूर्ण रूप से अहिंसावादी बन गया। कुछ समय पश्चात हिरण ने वापस आ कर बहेलिए से कहा कि अब तुम मुझे मार सकते हो परंतु बहेलिए को अब तक हिंसा से घृणा हो गई थी। उसने हिरण को मारने से मना कर दिया।

उसके बाद स्वर्गलोक से शंकर भगवान ने बहेलिए तथा हिरण के परिवार के लिए दो पुष्प विमान भेजकर बहेलिया तथा हिरण के परिवार को शिवलोक का अधिकारी बनाया।

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