
सीता नवमी पूजन की विधि।
सीता नवमी के पावन दिवस पर पूजा और व्रत करने वाले जातक सुबह के समय ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें उसके बाद सच्चे मन से व्रत और पूजा का संकल्प करें। तत्पश्चात् एक चौकी पर एक लाल कपड़ा बिछा लें, फिर माता सीता और भगवान श्री राम की तस्वीर या मूर्ति उस पर बिराजमान कर दें। इसके बाद पूरी जगह को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर दें।
अब देवी सीता का श्रृंगार करके सुहाग का सामान अर्पित करें। इसके बाद रोली, माला, फूल, चावल, धूप, दीप, फल व मिष्ठान अर्पित करें। माता सीता को प्रसन्न करने के लिए पूजा विधि में पीले रंग के फूलों का इस्तेमाल करना चाहिए । तिल के तेल या गाय के घी से दीपक जलाएं और फिर माता की आरती उतारें। इसके बाद 108 बार माता सीता के मंत्रों का जप करें और सीता चालीसा का पाठ करें। शाम के समय भी माता सीता की पूजा करें और दान जरूर करें।
सीता नवमी व्रत की कहानी।
पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहता था, उसका नाम देवदत्त था। उस ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूप गर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। एक बार ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गया हुआ था इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई। जब उसके व्यभिचार का पर्दाफाश हुआ तो उसने दुष्ट के साथ मिल कर पूरे गांव को जलवा दिया। इस तरह ब्राह्मणी ने अपना सारा जीवन पाप कर्मों में लिप्त हो कर बिताया ।
पति से धोखा करने की वजह से अगले जन्म में उसने चांडाल के घर जन्म लिया। निर्दोष गांव वालों को कष्ट देने की वजह से इस जन्म में उसे भीषण कुष्ठ रोग हुआ। पूर्व जन्म में उसने जो व्यभिचार किया था उसके फल स्वरूप वह अंधी भी हो गई। इस तरह वह दर दर भटकने और असह्य पीड़ा उठाने को मजबूर हो गई।
इसी तरह भटकती हुई एक दिन वह कैलाशपूरी पहुंची। उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी थी। जानकी नवमी के दिन वह हाथ फैला कर भोजन की भीख मांगने लगी। इसी प्रकार गिरते पड़ते वह कनक भवन के पास स्थित हज़ार पुष्प जड़ित स्तंभों से होती हुई अंदर आ पहुंची, वह बार कुछ खाने को मांग रही थी।
उसकी दशा देखकर वहां मौजूद एक श्रद्धालु भक्त ने उसे कहा, आज भोजन अन्न दान से पाप लगता है, कल भर पेट प्रसाद मिलेगा। यह बोल कर उसने दया करते हुए उसे तुलसी का पान और थोड़ा जल दिया। कुछ समय बाद भूख की मारी वह पापिन मृत्यु को प्राप्त हुई। लेकिन अनजाने में ही उससे सीता नवमी का व्रत पूर्ण हो गया।
जिसके फल स्वरूप वह पाप मुक्त हुई, उसे स्वर्गलोक में रहने को मिला। फिर अगले जन्म वह कामरूप देश के महाराजा जय सिंह की रानी बनी। इस तरह माता सीता की असीम कृपा से उसके समस्त रोग दोष और पापों का नाश हुआ और सद्गति मिली।
सीता नवमी पूजा तथा व्रत के लाभ।
इस दिन जानकी माता की पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। जिन लोगों का जीवन कष्ट में बीत रहा हैं उन्हें अपनी पीड़ा से मुक्ति मिलती है। जानकी माता को त्याग और समर्पण की देवी भी कहा जाता है इस लिए उनकी पूजा करने वाले व्यक्ति में भी यह दैवीय गुण उतर आते हैं। जब किसी व्यक्ति में परोपकार, त्याग, सेवाभाव, प्रेम, समर्पण, सहानभूति, विश्वास का संचार होता है तो कलेश, इर्षा, घमंड, नफरत, द्वेष, रोष और अविश्वास जैसे दोष समाप्त हो जाते हैं। फिर उसकी समृद्धि और सुख शांति का दौर आने लगता है। इसके आलावा मानसिक व्यथा से पीड़ित व्यक्ति और असाध्य रोगों से त्रस्त व्यक्ति को भी सीता नवमी व्रत से राहत और मुक्ति मिलती है।