Sakat Chauth Vrat Katha In Hindi –2

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सकट चौथ व्रत:

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चौथ को गणेश चौथ का व्रत किया जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। यह व्रत लड़कों के लिए किया जाता है। सकट चौथ के व्रत में महिलाएं दिन भर निर्जल व्रत रखकर रात में पूजा करने के बाद फलाहार करती हैं, लेकिन कई जगह पर महिलाएं पूजा के बाद खाना भी खा लिया जाता है। इस व्रत में चांद निकलने पर ही पूजा की जाती है। लेकिन कहीं–कहीं शाम को ही पूजा कर ली जाती है। इस दिन तिल का भोग लगाया जाता है इसलिए इसे तिलकुट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल को भूनकर उसमें गुड़ मिलाकर उसका बकरा बनाया जाता है और कहीं पर पहाड़ बनाकर उसकी पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद बालक से उसको करवाया जाता है और तरह–तरह के लडडू भी बनते हैं। सकट चौथ में शकरकंदी और चावल का आटा भी पूजा में रखा जाता है।

सकट चौथ व्रत कथा:

एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह दोनों धर्म पुण्य को नहीं मानते थे, इसके कारण उनके कोई संतान भी नहीं थी। एक दिन उनकी पड़ोसन अपने घर में सकट चौथ की कहानी सुन रही थी, तब साहूकारनी ने उसके पास जाकर पूछा कि तुम क्या कर रही हो? पड़ोसन ने बताया कि वह सकट चौथ का व्रत करके व्रत की कथा सुन रही हूं! तब साहूकार की पत्नी ने कहा कि चौथ का व्रत करने से क्या होता है? पड़ोसन बोली कि इसको करने से अन्न, धन, सुहाग हो, बेटा हो! यह सुनकर साहूकारनी बोली कि यदि मेरे गर्भ रह जाए तो सवा सेर तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत भी करूंगी। कुछ दिन बाद उसके गर्भ रह गया तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाए तो मैं ढाई सेर का तिलकुट करूंगी। समय पूरा होने पर उसके लड़का भी हो गया तो वह बोली कि हे चौथ माता! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा तो सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी। जब बेटे का विवाह तय हो गया तो सब लोग विवाह करने के लिए चले गए, लेकिन साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। 

तब चौथ बिन्दायक जी ने सोचा कि जब से इसे गर्भ रहा है तब से रोज तिलकुट बोलती है और अब तो बेटे का विवाह भी हो रहा है तब भी इसने तिल का एक दाना भी नहीं दिया।यह सोचकर चौथ माता गरजती हुई साहूकारनी के बेटे की शादी में पहुंच गई और जब लड़के ने तीन फेरे लिए तो चौथ माता ने लड़के को उठाकर पीपल पर बैठा दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया और सभी लोग दूल्हे को ढूंढने लगे, परन्तु वह कहीं नहीं मिला। हारकर सभी लोग वापस लौट आए।  उसके बाद जब भी वह लड़की गनगौर पूजने गांव से बाहर दूब लेने के लिए जाती थीं, तब एक लड़का वहां आता जो कि दूल्हे के भेष में होता था उस लड़की को देखकर कहता था कि आ मेरी अर्धब्याही! यह बात सुन–सुनकर वह लड़की सूखने लगी। तब एक दिन लड़की की मां ने उससे पूछा कि क्या बात है बेटी तू किस चिंता में इतनी दुबली हो रही है मैं तो तुझे अच्छा खिलाती हूं, अच्छा पहनाती हूं फिर भी तू क्यों सूखती जा रही है। लड़की ने कहा कि मां मैं जब भी दूब लेने के लिए जाती हूं तो पीपल में से एक लड़का निकल कर बोलता है कि आ मेरी अर्द्धब्याही! उसने हाथों में मेंहदी लगा रखी है और सेहरा भी बांध रखा है। दूसरी बार जब लड़की दूब लेने जाती है तो उसकी मां भी साथ में जाती है और देखती है कि अरे यह तो मेरा जंवाई है। तब वह अपने जंवाई से कहती हैं कि यहां क्यों बैठा है, मेरी बेटी तो अर्धब्याही कर दी और अब क्या लेगा? तब लड़का बोला कि मेरी मां ने चौथ माता का तिलकुट बोला था लेकिन उसने चौथ माता का तिलकुट नहीं किया इसलिए चौथ माता नाराज हो गईं और उन्होंने मुझे फेरों से उठाकर पीपल पर बैठा दिया।  

तब लड़की की मां साहूकारनी के पास जाकर पूछती है कि तुमने चौथ माता का कुछ बोला है क्या? साहूकारनी ने कहा कि तिलकुट बोला था लेकिन मैंने नहीं किया। लड़की की मां ने कहा कि चौथ माता ने नाराज हो कर तुम्हारे बेटे को पीपल पर बैठा दिया है तुम उनका तिलकुट करो तो तुम्हारा बेटा वापस मिल जायेगा।  साहूकारनी ने कहा कि अब मैं चौथ माता का ढाई मन का तिलकुट करूंगी। उसकी बात सुनकर चौथ माता ने साहूकारनी के बेटे को फेरों पर लाकर बिठा दिया। बेटे का विवाह हो गया तब साहूकारिनी ने चौथ माता का ढाई मन का तिलकुट करा और बोली कि हे चौथ माता! तेरे आशीर्वाद से मेरे बेटे बहू घर आए हैं, अब मैं हमेशा तिलकुट करके व्रत करूंगी। पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब कोई तिलकुट करके चौथ का व्रत व्रत करना।  

हे चौथ माता! जैसा आपने साहूकारनी के बहू–बेटे को उससे मिलवाया वैसा सबको मिलवाना कहते सुनते सब परिवार का भला करना। 

बोलो चौथ माता की जय,🙏

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