
गोवर्धन पूजा व्रत कथा:
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है। एक समय की बात है श्रीकृष्ण ग्वाल बालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बहुत से व्यक्ति एक उत्सव मना रहे थे। श्रीकृष्ण ने जब उसके बारे में पूछा तो वहां उपस्थित गोपियों ने उन्हें कहा कि आज यहां इंद्रदेव भगवान की पूजा होगी जिससे इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण पोषण होगा। यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहां वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन पर्वत का पूजन करना चाहिए।
श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयानक बारिश से भयभीत होकर सभी गोपियां ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए। यह जानकर श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी गोपियां और ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तत्पश्चात श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठाकर छाते सा तान दिया। इन्द्रदेव के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहें किन्तु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इन्द्रदेव आश्चर्य में पड़ गए। तब ब्रह्मा जी ने उन्हे बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है। सारी सच्चाई जानने के बाद इंद्रदेव भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव के अहंकार को चूर-चूर कर दिया था। अतः उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमि तल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाए। तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है।
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गोवर्धन जी की आरती:
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज,ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार, ओ धार,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।
तेरी सात कोस की परिक्रमा,
तेरी सात कोस की परिक्रमा,
और चकलेश्वर है विश्राम, विश्राम,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।
तेरे गले में कंठा साज रहयो,
तेरे गले में कंठा साज रहयो,
ठोड़ी पे हीरा लाल ओ लाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।
तेरे कानन कुंडल चमक रहे ओ,
तेरे कानन कुंडल चमक रहे,
तेरी झांकी बनी विशाल, विशाल,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण,
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण,
करो भक्त का बेड़ा पार, ओ पार,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो,
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहयो।।