Kajari Teej Vrat Katha In Hindi.

कजरी गीत व्रत की कथा:

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कजरी तीज:

भादों मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली तीज को कजरी तीज कहा जाता है । कजरी तीज को कजली तीज या बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। सुहागन महिलाएं वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। कजरी तीज के दिन सुहागिन महिलायें भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं। कजरी व्रत के दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह तीज ख़ासतौर पर मिर्जापुर और बनारस जिले में एक विशेष त्योहार के रूप में मनाई जाती है। प्रायः लोग नावों में चढ़कर कजरी गीत गाते हैं। यह वर्षा ऋतु का एक विशेष राग होता है। वैसे तो यह त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं झूला डालकर झूलती हैं। कजरी तीज की इस व्रत कथा का पाठ करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है और सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कजरी तीज व्रत की पूजा कैसे करें:

कजरी तीज के दिन भगवान शिव और पार्वती की उपासना की जाती है। इस दिन नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। पूजा के लिए तालाब की आकृति बनाने के लिए मिट्टी से पाल बनाई जाती है और नीम की टहनी को तालाब के भीतर दीवार पर लगाया जाता है। तालाब में कच्चा दूध और जल डाला जाता है और एक दीया प्रज्वलित किया जाता है। पूरी विधि के साथ नीमड़ी माता को केला, सेब, सत्तू, नींबू, ककड़ी, रोली, मोली और अक्षत अर्पित करना चाहिए।। घी और मेवे से बना प्रसाद चढ़ाएं, शाम को पूजा के बाद रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर इस व्रत को खोला जाता है।

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कजरी तीज व्रत कथा:

एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी भादों मास की कृष्ण पक्ष की तीज का व्रत करती थी। भादों मास की कजरी तीज आई तो ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कहीं से चने का सत्तू लेकर आओ। ब्राह्मण ने कहा कि मैं सत्तू कहां से लाऊं तो ब्राह्मणी ने कहा कि तुम चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो लेकिन मेरे लिए सत्तू लेकर आओ। रात का समय था, ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान में घुस गया। वहां पहुंचकर उसने चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोला और सत्तू बना लिया और जाने लगा। इतने में आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर चोर चिल्लाने लगे।

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शोर सुनकर साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं, मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सत्तू बनाकर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी बात सुनकर उसकी तलाशी ली। उसके पास सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं मिला। ब्राह्मण ने कहा कि मेरी पत्नी पूजा करने के लिए मेरा इन्तजार कर रही है। साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानता हूं, फिर उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रूपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। घर पहुंच कर ब्राह्मण ने सारी बातें ब्राह्मणी को बताई। ब्राह्मणी यह सुनकर बहुत खुश हो गई फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। हे कजरी माता! जिस तरह आपने ब्राह्मण के दिन फेरे वैसे ही सबके दिन फिरे। कजली माता की कृपा सब पर हो! इस व्रत के पूर्ण लाभ के लिए कथा का पाठ भी किया जाता है। मान्यता है कि इस कथा के पाठ से तीज माता का आशीर्वाद मिलता है।

बोलो तीज माता की जय हो!

कजरी तीज व्रत की दूसरी कथा:

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कजरी तीज व्रत की एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे। साहूकार के सात बेटों में सबसे छोटा बेटा अपाहिज था और उसे वेश्यालय जाने की बुरी आदत थी। वहीं उसकी पत्नी पतिव्रता नारी थी। वह हमेशा पति की सेवा में लगी रहती थी। वह पति के कहने पर उसे कंधे पर बैठा कर वेश्यालय तक भी ले जाती थी। एक बार जब वह पति को वेश्यालय में छोड़ने के बाद वहीं पास की नदी कपास बैठकर पति के वापस आने का इंतजार करने लगी।

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तभी मूसलाधार वर्षा हुई और नदी बढ़ने लगी। तभी इस नदी से एक आवाज आई कि आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यालरी होय यह सुनते ही उसने देखा कि दूध से भरा हुआ एक दोना नदी में तैरता हुआ उसी को ओर आ रहा है। उसने उस दोने का सारा दूध पी लिया। इसके बाद भगवान की कृपा से उसका पति वेश्याओं को छोड़ कर उससे प्रेम करने लगा। इसके लिए साहूकार की पत्नी ने भगवान को खूब धन्यवाद दिया और नियम पूर्वक कजरी का व्रत पूजन करने लगी। हे तीज माता! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना

बोलो तीज माता की जय!

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