
भादों मास की गणेश चतुर्थी:
भादों मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने-अपने घर में गणेशजी की स्थापना करते हैं और फिर अनंत चतुर्दशी के दिन उनकी विदाई कर देते हैं। गणेश चतुर्थी को गणेशजी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है ऐसा माना जाता है। कि इसी दिन गणेशजी का जन्मदिन हुआ था। गणेश चतुर्थी व्यापक रूप से संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन व्रत करके गणेश चतुर्थी व्रत कथा या गणेश चतुर्थी की कहानी सुनी जाती है। विघ्न विनायक श्री गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है तथा श्री गणेश देवताओं में प्रथम पूजनीय है और बुद्धि के देवता है, गणेश जी का वाहन चूहा है और गणेश जी की पत्नियां रिद्धि और सिद्धि है। इनका प्रिय भोग मोदक है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा :
गणेश चतुर्थी व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार एक बार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्वान किया था। उन्होंने गणेश जी महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो मैं लिखना बन्द कर दूंगा। तब व्यासजी ने उनसे कहा कि हे प्रभु! आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः आप स्वयं समझ कर और त्रुटि हो तो निवारण करते हुए श्लोक को लिपिबद्ध करें। इस प्रकार चतुर्थी के दिन ही व्यासजी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया था। उसके बाद 10 दिन बाद अनंत चतुर्दशी को लिखने का कार्य समाप्त हुआ था।

इस प्रकार इन दस दिनों तक गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे। दस दिनों तक लगातार एक ही दशा में बैठने के कारण उनका शरीर अकड़ गया और शरीर पर धूल और मिट्टी की परत जमा हो गई, तब दस दिन बाद गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान करके अपने शरीर पर जमी धूल और मिट्टी को साफ किया था, उस दिन चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को स्थापित किया जाता है, और 10 दिन भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनंत चतुर्दशी को विसर्जित कर दिया जाता है। गणेश जी की प्रतिमा को उत्तम मुहूर्त में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि व रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।
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