Gangaur Vrat Ki Kahani

Maakonaman

गणगौर व्रत

गणगौर व्रत में माता पार्वती जी की और भगवान शिव जी की पूजा की जाती है।  यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को होता है।  इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं।  गणगौर शब्द गण और गौर दो शब्दों से बना है, गण का अर्थ है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती।  माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने अपनी अर्धंगिनी पार्वती जी को और तमाम स्त्रियों को सौभाग्यवर दिया था।

गणगौर व्रत कथा:

एक समय की बात है जब भगवान शिव नारद जी और पार्वती को साथ में लेकर पृथ्वी पर घूमने के चल दिए। घूमते घूमते वह तीनों लोग एक गांव में जा पहुंचे।  उस दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया थी।  गांव के लोगों ने जब शंकर जी के आने सूचना सुनी तो धनी स्त्रियां उनके पूजन के लिए नाना प्रकार के भोजन तैयार करने में लग गईं, इसी कारण से उन धनी स्त्रियों को काफी देर हो गई।  दूसरी तरफ निर्धन घर की स्त्रियां जो जैसे बैठी थीं वैसे ही थाल में हल्दी, चावल और जल ले जाकर शिव जी और पार्वती जी की पूजा अर्चना की।  पार्वती जी ने उनकी अपार श्रद्धा भक्ति को देखकर पार्वती जी ने उनकी भक्तिपूर्वक लाई वस्तुओं को स्वीकार कर लिया और उनके ऊपर सुहाग रूपी हल्दी छिड़क दी।  इस प्रकार से गौरी मां से आशीर्वाद तथा मंगल कामनाएं प्राप्त कर वे स्त्रियां अपने घर को चली गईं।

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इसके बाद धनी स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके छप्पन प्रकार के पकवान सोने के थाल में सजा कर आईं, तब शिव जी ने कहा कि हे पार्वती! तुमने सारा सुहाग का प्रसाद तो उन साधारण स्त्रियों में बांट दिया, अब इन सबको क्या दोगी? पार्वती जी ने कहा–हे नाथ! आप कृपया उनकी बात छोड़ दें, उन्हे ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस मिला है इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा, परंतु मैं इन लोगों को भी अपनी अंगुली चीरकर रक्त सुहाग रस दूंगी जो मेरे समान ही सौभाग्य शालिनी बन जायेंगी।  जब धनी स्त्रियां शिव जी और पार्वती जी का पूजन कर चुकीं तो पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया और कहा –तुम सब वस्त्राभरणों का परित्याग कर मोह–माया से रहित हो तथा तन, मन, धन से पति की सेवा करना, पार्वती जी से आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हे प्रणाम करके कुलीन स्त्रियां भी अपने–अपने घरों को लौट गईं।  छिड़का हुआ खून जिसके ऊपर जैसा पड़ा था उसको वैसा ही सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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उसके बाद पार्वती जी ने पति की आज्ञा से नदी में जाकर स्नान किया।  बालू के महादेव जी बनाकर उनका पूजन किया, भोग लगाया और प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर, पार्वती जी ने मस्तक पर टीका लगाया।  उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए और पार्वती जी को वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरी पूजा और तुम्हारा व्रत करेगी उनके पति चिरंजीव होंगे और अंत में उन्हे मोक्ष प्राप्त होगा।  भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।

इसके बाद पार्वती जी नदी तट से चलकर उस स्थान पर आईं जहां पर वह शिव जी को और नारद जी को छोड़ कर गईं थीं।  भगवान शिव ने उनसे देर से आने का कारण पूछा तो पार्वती जी ने उत्तर दिया कि मेरे भाई और भाभी नदी के किनारे मिल गए थे, उन्होंने मुझसे दूध–भात खाने और ठहरने का आग्रह किया, इसी कारण से मुझे आने में विलम्ब हो गया।  ऐसा सुनकर अन्तर्यामी भगवान शिव स्वयं भी दूध –भात खाने के लिए चल पड़े।  पार्वती जी ने जब यह देखा कि अब तो पोल खुल जायेगी तो वह अधीर हो कर शंकर जी के पीछे–पीछे चल पड़ीं।  पार्वती जी ने जब नदी की ओर देखा तो पाया कि वहां एक सुन्दर सा महल बना हुआ है, उसमें पार्वती जी के भाई–भाभी भी विराजमान थे।  वे लोग जब वहां पहुंचे तो उन लोगों ने उनका स्वागत किया।  दो दिन तक तीनों लोगों ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया, तीसरे दिन सुबह पार्वती जी के चलने के आग्रह को शिव जी ने ठुकरा दिया।  इससे पार्वती नाराज होकर अकेले ही चल पड़ीं।  मजबूर हो कर महादेव जी को भी उनका अनुसरण करना पड़ा। 

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नारद जी भी उनके साथ थे।  चलते–चलते तीनों लोग काफी दूर निकल आए, शाम होने लगी थी तभी शिव जी ने कहा कि मैं तो तुम्हारे मायके में अपनी माला ही भूल आया।  इसपर पार्वती जी जाकर माला लाने को तैयार हो गईं, परन्तु शिव जी की आज्ञा ना मिलने से वो जा ना सकीं। शिव जी ने नारद जी को माला लेकर आने को कहा, नारद जी जब वहां पहुंचे तो वहां पर ना तो कोई महल था और ना ही पार्वती जी के भाई और भाभी ही थे। वहां पर घोर अन्धकार था और हिंसक पशु विचरण कर रहे थे। यह देखकर नारद जी को बहुत आश्चर्य हुआ, अचानक बिजली चमकने की चमक से वृक्ष पर टंगी हुई शिव जी की माला नारद जी को दिखाई दे गई। नारद जी माला लेकर भयभीत होते हुए शिव जी के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया। इस प्रसंग को सुनकर शिव जी हंसते हुए बोले कि हे मुनीवर! आपने जो कुछ भी देखा था वह सब पार्वती की अनोखी माया का प्रतिफल है। वे अपने पार्थिव पूजन की बात को आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठा बहाना बनाया था। उस असत्य को सत्य साबित करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से झूठे महल की रचना की और अपने भाई और भाभी का भी निर्माण किया। अपितु सच्चाई को उभारने के लिए ही मैने माला लाने के लिए दोबारा आपको उस स्थान पर भेजा था।

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ऐसा जानकर नारद जी ने माता पार्वती के पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रशंशा की। जहां तक पार्वती जी के पूजन की बात को छिपाने का सवाल है वह भी समीचीन ही जान पड़ता है क्योंकि पूजा छिपकर ही करनी चाहिए। माता पार्वती के अनुसार जो स्त्रियां इस दिन गुप्त रूप से पति का पूजन कार्य करेंगी उन्हे उनकी कृपा से उनकी समस्त मनो कामनाओं की पूर्ति होगी। तथा उनके पति भी चिरंजीवी होंगे।

जिस प्रकार माता पार्वती ने गणगौर व्रत को छिपाकर किया था उसी परम्परा के अनुसार आज भी पूजन के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं।

गणगौर माता की आरती

जय पार्वती माता जय पार्वती माता
ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता

जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता

हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
सृष्ट‍ि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता

नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।
जय पार्वती माता जय पार्वती माता।

देवन अरज करत हम चित को लाता
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।

जय पार्वती माता जय पार्वती माता।
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता

सदा सुखी रहता सुख संपति पाता।

जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता।

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