
गणेश चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है, सतयुग में एक राजा थे जिनका नाम मकरध्वज था। राजा मकरध्वज बहुत ही धर्म–कर्म करने वाले थे और अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह पालन–पोषण करते थे। इससे उनकी प्रजा बहुत ही खुश और संतुष्ट थी। राजा का मुनि याज्ञवल्कय का बड़ा स्नेह था। उनके आशीर्वाद से राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। मकरध्वज राज्य के स्वामी थे परन्तु उनका राजकाज उनका एक विश्वासपात्र मंत्री चलाता था।मंत्री का नाम धर्मपाल था। धर्मपाल के पांच बेटे थे। सभी पुत्रों का विवाह हो चुका था। सबसे छोटे पुत्र की पुत्रवधु गणेश जी भक्त थी और सदैव उनका पूजन किया करती थी। वह गणेश चौथ का व्रत भी किया करती थी।

परन्तु उसकी सास को बहू की गणेश–भक्ति नहीं सुहाती थी। उसे लगता था कि उसकी बहू कोई टोना–टोटका जानती है और वही किया करती है। सास ने बहू के द्वारा गणेश पूजा को बन्द करने के लिए अनेक उपाय भी किए परन्तु कोई भी उपाय सफल नहीं हो पाया। बहू की गणेश जी पर पूरी आस्था थी, इसीलिये वह विश्वास के साथ गणेश जी की पूजा करती रही।

गणेश जी यह जानते थे कि मेरी पूजा करने से सास अपनी बहु को काफी परेशान करती है। सास को मजा चखाने के लिए राजा के बेटे को गायब करवा दिया। राजा के पुत्र के गायब होने से राज्य में हाहाकार मच गया और राजा के बेटे को गायब करने के सन्देह सास पर किया जाने लगा। सास की चिन्ता बढ़ने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने सास के पैर पकड़ लिए और कहा कि–मां जी! आप गणेश जी का पूजन कीजिए, वे विघ्न हरने वाले हैं आपका सारा दुःख दर्द दूर कर देंगे। सास ने बहू के साथ गणेश जी का पूजन किया। गणेश जी ने प्रसन्न होकर राजा के पुत्र को वापस लाकर दे दिया। इस प्रकार सास और बहू दोनों बहुत खुश रहने लगीं और साथ ही साथ गणेश पूजन और गणेश वंदना करने लगीं।