Kalam Dawaat Pooja Ki Kahani/Kalam Dawaat ki pooja kyon ki jati hai.

कलम दवात की पूजा क्यों की जाती है आइए जानते हैं।

भगवान श्री चित्रगुप्त जी का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाला माना गया है। इस दिन कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त महाराज की पूजा करते हैं। इसे कलम दवात की पूजा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधि ले रहे हैं और इस दौरान वह सृष्टि की रक्षा करें। इसके बाद बह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष कलम-दवात लिए खड़ा है।

बह्माजी ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला,’ मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने करें और मेरे लिए कोई काम बताएं। ब्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए ‘कायस्थ’ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से जाने जाओगे। यमराज के यहां तुम काम करोगे। धर्मराज की यमपुरी में विचार–विमर्श करना तुम्हारा काम होगा। कायस्थ वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ ही तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त जी को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। 

चित्रगुप्त महाराज की दो शादियां हुईं थीं। पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा जो ब्राह्मण कन्या थी। इनसे 4 पुत्र हुए जो भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्यभानु कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती नागवंशी क्षत्रिय कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए जो चारु, चितचारू, मतिभानु, सुचारु, चारुण,चित्र, हिमवान,और अतिन्द्रिय कहलाए।| 

चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और उनसे कहा कि वे देवताओं का पूजन पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए और धर्मराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे। 

भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की कथा

प्राचीन काल में पृथ्वी पर सौराष्ट्र राज्य में सौदास नाम का एक राजा हुआ करता था। वह बहुत दुराचारी और अधर्मी था।  उसने अपने राज्य में घोषणा कर रखी थी कि उसके राज्य में कोई भी हवन-तर्पण, दान समेत अन्य धार्मिक कार्य नहीं करेगा। राजा के डर से वहां के लोग राज्य छोड़कर दूसरी जगह चले गए। जो लोग वहां रह गए वे यज्ञ, हवन और तर्पण नहीं करते थे जिससे उसके राज्य में पुण्य का नाश होने लगा। 

एक दिन राजा शिकार करने के लिए जंगल में निकला और रास्ता भूल गया। वहां पर उसने कुछ मंत्र सुने। जब वह वहां गया तो उसने देखा कि कुछ लोग भक्तिभाव से किसी की पूजा कर रहे हैं। राजा इस बात को लेकर काफी क्रुद्ध हुआ और उसने कहा- मैं राजा सौदास हूं, आप लोग मुझे प्रणाम करें। उसकी इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया और वे अपनी पूजा में मग्न रहे। यह सब देखकर राजा क्रुद्ध हो गया और उसने अपनी तलवार निकाल ली। 

यह देखकर पूजा में बैठा सबसे छोटा लड़का बोला- राजन आप यह गलत कर रहे हैं। हम लोग अपने इष्टदेव चित्रगुप्त भगवान की पूजा कर रहे है और उनकी पूजा करने से सभी पाप कर्म मिट जाते हैं। यदि आप भी चाहे तो इस पूजा में हम लोगों के साथ शामिल हो जाएं या हम लोगों को मार डालें।  राजा उस बालक की बात सुनकर काफी प्रसन्न हुआ और कहा तुममें बहुत साहस है। सौदास ने कहा, मैं भी चित्रगुप्त की पूजा करना चाहता हूं। कृपया आप लोग मुझे इसके बारे में विस्तार से बताएं। राजा सौदास की बात सुनकर लोगों ने कहा कि घी से बनी मिठाई, फल, चंदन, दीप, रेशमी वस्त्र, मृदंग और तरह–तरह के संगीत यंत्र बजाकर इनकी पूजा की जाती है।

इसके बाद वह बालक बोला इसके लिए आप को पूजा का यह मंत्र बोलना होगा, दवात कलम और हाथ में कलम, काठी लेकर पृथ्वी पर घूमने वाले चित्रगुप्त जी आपको नमस्कार है। चित्रगुप्त जी आप कायस्थ जाति में उत्पन्न होकर लेखकों को अक्षर प्रदान करते हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। जिसे आपने लिखने की जीविका दी, उसका पालन करते है इसलिए मुझे भी शांति दीजिए। राजा सौदास ने इसके बाद उनके बताए नियम का पालन करते हुए श्रद्धापूर्वक पूजा की और पूजा का प्रसाद ग्रहण कर अपने राज्य लौट गया। 

कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को यमुना के घर पर उनके भाई यम ने भोजन किया था। अत: यह दिन यम द्वितीया के तौर पर यानि कि भाईदूज के रूप में भी भी मनाया जाता है। यमुना ने यमराज को आयु बढ़ाने का वर दिया। ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करते हैं उनके घर सुख और समृद्धि बनी रहती है। 

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