
देवउठनी एकादशी व्रत कथा–कार्तिक मास स्पेशल कथा।
पौराणिक कथाओं का अनुसार एक राजा था, उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। उसके राज्य में एकादशी के दिन ना कोई अन्न ना बेचता था और ना ही अन्न खाता था। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही, भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और इतनी सुंदर स्त्री को देख चकित रह गया। वह सुंदरी के पास गया और बोला, हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?तब सुंदर स्त्री बने भगवान ने कहा कि मैं निराश्रित हूं। मैं यहां किसी को जानती भी नहीं हूं, किससे सहायता मांगू। राजा उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया था वह बोला कि कोई बात नहीं तुम यहां किसी को जानती नहीं हो इसलिए तुम मेरे साथ मेरे महल में चलो मैं तुम्हे अपनी रानी बनाकर रखूंगा।

सुंदरी बोली: मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाकर दूंगी, तुम्हें खाना होगा। राजा उस समय उस पर पूरी तरह से मोहित था, इसलिए उसकी सारी शर्ते मान लीं। दूसरे दिन एकादशी थी। रानी ने नौकरों को हुक्म दिया कि बाजार में रोज की तरह ही अन्न बेचा जाए। और सभी को भोजन बनाने और करने का आदेश ।उसने महल में मांस,मछली आदि पकवान बनाकर राजा को खाने के लिए कहा। यह देख राजा ने कहा कि रानी! आज एकादशी व्रत है तो मैं केवल फलाहार ही करता हूं और मेरी प्रजा भी आज अन्न ग्रहण नहीं करती है।
तब रानी ने अपनी शर्त की याद दिलाई और बोली कि आपने मेरी सारी बातें मानने का वचन दिया है, अब या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। राजा ने अपनी परेशानी बड़ी रानी से बताई तो बड़ी रानी ने कहा! महाराज! आप अपना धर्म ना छोड़ें, बड़े राजकुमार का सर काट लेने दें। रानी ने कहा कि पुत्र तो फिर मिल जायेगा लेकिन धर्म एक बार जाने के बाद वापस नहीं मिलेगा।

उसी समय बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। मां की आंखों में आंसू देखकर उसने पूछा कि आप क्यों रो रही हैं, तो मां ने उसे सारी बातें बता दी। तब राजकुमार ने कहा कि मै पिता जी के धर्म की रक्षा के लिए अपना सर देने को तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होगी। राजा बहुत दुखी मन से राजकुमार का सर देने को तैयार हुआ तो उसी समय रानी के रूप से भगवान विष्णु ने सामने प्रकट हो कर अपनी सच्चाई राजा को बता दी। भगवान विष्णु जी ने कहा, हे राजन्! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हो गए हो अतः मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं तुम जो चाहो वरदान मांग सकते हो। राजा ने कहा कि हे भगवन! आपका दिया हुआ सब कुछ है आप बस हमारा उद्धार करें। भगवान ने उसको आशीर्वाद दिया और उसी समय आकाश से एक विमान उतरा, राजा ने अपना राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और विमान में सवार होकर परम धाम को चला गया।