
आवंला नवमी:
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है। इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है। कई जगहों पर आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर ही इस दिन भोजन ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि इससे आयु में वृद्धि होती है। माना जाता है कि अगर इस दिन कोई भी शुभ काम किया जाए तो उससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। पूजा के दौरान आंवला नवमी की कथा भी सुनी जाती है। आवंला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है।
आवंला नवमी की कहानी:
किसी नगर में एक सेठ थे, जो आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को आंवले के पेड़ के नीचे बैठाकर भोजन कराया करते थे। साथ ही उन्हें सोने के आंवले दान में दिया करते थे। यह सब देख सेठ के बेटों को अच्छा नहीं लगता था, और वो अपने पिता से बहुत झगड़ा करते थे। एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे सोने के आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा । इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए। बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गये। राजा और रानी उस दिन आंवले का दान नहीं कर पाए और इसी कारण से उन्होंने भोजन भी नहीं किया।

इसी तरह से भूखे प्यासे रहते हुए उन्हे सात दिन हो गए, तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जायेगा। भगवान ने जंगल में ही महल, राज्य और बाग बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह जब राजा और रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
यह देखकर राजा रानी से कहने लगा! रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आय। आओ अब हम लोग नहा धोकर आंवले दान करे और भोजन करे। राजा रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने तथा माता पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू– बेटे के बुरे दिन आ गए।
उनका राज्य दुश्मनो ने छीन लिया तो वो दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुँचे। उनकी हालत इतनी ज्यादा खराब थी कि उनके पिता उन्हें पहचान नहीं पाए हुए उन्हे काम पर रख लिया।
बहू और बेटे तो यह सोच भी नहीं सकते थे कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मलिक भी हो सकते है इसी कारण से उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। यह देखकर वो यह सोचकर रोने लगी कि ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था, हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जायेगा। आज पता नहीं वो लोग जाने कहां होंगे। उसके आंसू बहकर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने पलट कर देखा और उससे पूछा कि बेटी तू क्यों रो रही है?
तब बहू ने बताया कि आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर पता नहीं कहां चले गए। उसकी बात सुनकर रानी ने उन्हें पहचान लिया, और उससे सारा हाल पूछा और फिर अपना हाल बताया और समझाया कि दान पुण्य करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बहू और बेटे उनकी बात सुनकर बहुत खुश हुए और वो भी सुखपूर्वक राजा और रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान! जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
इस कहानी के बाद बिंदायक जी की कहानी सुनते हैं।
बिंदायक जी की कहानी

विष्णु जी जब लक्ष्मी जी से विवाह करने जा रहे थे तो उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया। जब सभी देवता इक्कठे हो गए तो सभी देवता कहने लगे कि हम केवल एक शर्त पर बारात में चलेंगे अगर आप गणेश जी को ना ले चलें। विष्णु जी के पूछने पर सबने कहा कि गणेश जी साथ ले चलने से हमारी बेइज्जती हो जायेगी, क्योंकि इसे तो एक मन मूंग, सवा मन चावल, खूब सारा घी नाश्ता करने के लिए चाहिए और खाने के लिए बार बार चाहिए। इसके सूंड और लम्बे लम्बे कान और ऊंचा माथा देखकर सभी लोग हमारा मजाक बनायेंगे, इसको साथ लेकर जाकर क्या करना है। देवताओं ने कहा कि इसको देखकर कुण्डिनपर की नारियां शरमा जायेंगी। इसको तो घर की रखवाली करने के लिए यहीं छोड़ देते हैं।
ऐसा कहकर सभी देवता भगवान विष्णु जी की बारात में सम्मिलित हो कर चले गए। सबके जाने के बाद नारद जी वहां आए और उन्होंने गणेश जी से कहा कि सभी देवताओं ने तुम्हारा अपमान किया है और तुम्हे घर की रखवाली करने के लिए भी छोड़ गए हैं। तुम्हें साथ ले जाने से बारात अच्छी नहीं लगती इसीलिए तुम्हे अपने साथ नहीं ले गए। गणेश जी बोले कि अब क्या करें! तब नारद जी ने कहा कि तुम धरती थोथी कर दो, गणेश जी ने नारद जी के बताए अनुसार अपने चूहों की सेना भेजकर धरती को थोथी कर दिया, जिसकी वजह से भगवान विष्णु जी के रथ का पहिया धरती में घंस गया। सारे देवताओं ने मिलकर निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन पहिया नहीं निकल पाया। सभी जब थक गए तो किसी ने कहा कि किसी बढ़ई को बुला कर लाओ। बढ़ई को बुलाकर लाया गया तो बढ़ई ने पहिए को हाथ लगाते ही कहा! –जय बिन्दायक जी! जय गणेश जी! इस पर देवता बोले कि तूने बिन्दायक जी को क्यों याद किया? तब बढ़ई बोला कि बिन्दायक जी को याद किए बिना कोई भी कार्य नहीं होता। तब सब कहने लगे कि हमने तो बिन्दायक जी को घर पर ही छोड़ दिया है इसी कारण हमारा पहिया धंस गया। सभी देवता बिन्दायक जी को बुलाने के लिए वापस गए तब वह बोले कि आप सबने मेरा अपमान किया है इसलिए अब मैं नहीं जाऊंगा। फिर सबके मनाने पर गणेश जी रिद्धि और सिद्धि के साथ विवाह में सम्मिलित हुए। विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ और सभी खुशी खुशी घर वापस आ गए। बिन्दायक जी महाराज! जैसा आपने भगवान के कार्य सिद्ध किए इसी प्रकार सभी के कार्य सिद्ध करना।
बोलो बिन्दायक महाराज की जय! बोलो गणेश जी की जय!
Follow our other website kathakahani