
कामिका एकादशी व्रत कथा:
सावन के महीने को बहुत ही पावन और पवित्र महीना माना गया है। सभी धर्म पुराण ग्रंथों में सावन मास की बड़ी महान गाथा गाई गई है। सावन मास की जो पहली एकादशी होती है उस एकादशी का नाम है कामिका एकादशी। सावन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को हम कामिका एकादशी के नाम से जानते हैं। अतः इस एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को अपने सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत भगवान का सबसे प्रिय व्रत कहा जाता है। जिस प्रकार से सारे तीर्थों में गंगा स्नान को श्रेष्ठ माना गया है उसी प्रकार सारे व्रतों में एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी व्रत को हर व्यक्ति को करना चाहिए और किसी भी एकादशी को चावल नहीं बनाना चाहिए। एकादशी व्रत में भगवान की मूर्ति पर तुलसी दल अर्पण करना चाहिए, क्योंकि तुलसी भगवान को बहुत प्रिय हैं।
व्रत कथा:

एक समय की बात है कि किसी गांव में एक ठाकुर रहा करते थे। वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे। एक बार उनकी एक ब्राम्हण से भिड़ंत हो गई और क्रोधवश उन्होंने उस ब्राम्हण की हत्या कर दी। उस ब्राम्हण को मारने के बाद उस ठाकुर ने उस ब्राम्हण तेरहवीं करनी चाही। लेकिन सारे ब्राम्हण भोजन करने से मना करने लगे। तब उन्होंने सभी से अनुरोध किया कि हे भगवान! मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है कृपया मुझे बतलाइए?
इस प्रकार प्रार्थना करने पर उन सबने उस ठाकुर को एकादशी व्रत करने की सलाह दी। ठाकुर ने उन सबके बताए अनुसार एकादशी व्रत को किया। रात में जब वह भगवान की मूर्ति के पास सो रहा था तो उसने एक स्वपन देखा। स्वपन में भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा कि हे ठाकुर एकादशी व्रत करने की वजह से तेरा सारा पाप दूर हो गया है। अतः अब तू उस ब्राम्हण की तेरहवीं कर सकता है। तेरे घर सूतक नष्ट हो गया। इस प्रकार ठाकुर ने ब्राम्हण की तेरहवीं कर दी और ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गया। और अंत में मोक्ष प्राप्त करके विष्णु लोक को चला गया।
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