हलछठ/हलषष्ठी व्रत कथा:

आज मैं आपको हलषष्ठी व्रत की वो कथा सुनाने जा रही हूं जो कि मेरी मां सुनाती थीं।
किसी नगर में एक राजा था। उसके राज्य में कुम्हार जब भी आंवा लगाता था तो उसके बर्तन कभी भी साबूत नहीं निकलते थे, हमेशा ही बर्तन टूट जाते थे। राजा ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो पंडितों ने कहा कि अगर आंवा में रोजाना एक लड़के की बलि दी जाए तो बर्तन साबूत निकलेंगे। राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करा दी कि हर घर से एक बालक की बलि दी जाएगी। और ऐसा करने के बाद से आंवा से बर्तन साबूत निकलने लगे।

उसी नगर में एक बुढिया माई रहती थी। बुढ़िया माई का पति पहले ही दुनिया से विदा हो गया था और उसके एक ही बेटा था। जब बुढ़िया के बेटे की बलि देने का दिन आया तो वह बहुत दुःखी होकर जंगल में जाकर रो रो कर भगवान को याद करके उनसे विनती करने लगी कि उसके बेटे को बचा लें। उस दिन भादों मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि थी। उसी समय उधर से शंकर–पार्वती भ्रमण करते हुए जा रहे थे। पार्वती जी ने जब बुढ़िया माई को रोते हुए देखा तो महादेव जी से कहने लगीं कि हे प्रभु! इस बुढ़िया माई को क्या दुःख है जो इस प्रकार से जंगल में विलाप कर रही है। महादेव जी ने कहा कि हे प्रिये! यह तो मृत्यु लोक है यहां तो यह सब लगा ही रहता है तुम किस– किस का दुःख दूर करोगी। लेकिन पार्वती जी नहीं मानी तो शंकर जी और पार्वती जी एक बूढ़ा आदमी और एक बूढ़ी औरत का भेष धारण कर बुढ़िया के पास पहुंचे और उसके दुःख का कारण पूछा। बुढ़िया माई ने कहा कि आज उसके बेटे को बलि देने का दिन है और वह उसका इकलौता पुत्र है। अगर वह नहीं रहेगा तो मैं जीवित रह कर क्या करूंगी। महादेव जी ने कहा कि हे माई! तुम परेशान ना हो। महादेव जी ने बुढ़िया माई को थोड़े से जौ के दाने और एक सुपारी दी और कहा कि जब उसका बेटा आंवा में बैठे तो उसके चारों तरफ जौ के दाने छिड़क देना और उसके हाथ में सुपारी देकर कहना कि वह ॐ गणेशाय नमः का पाठ करे।

बुढ़िया जल्दी जल्दी घर आई और शाम होने का इंतजार करने लगी। शाम को राजा के सिपाही जब उसके बेटे को लेने के लिए आए तो वह भी उसके साथ जाने की जिद करने लगी। सिपाही बोले कि तुम वहां जाकर क्या करोगी लेकिन उसमे से एक सिपाही बोला कि जाने दो इसका एक ही बेटा है अपने सामने बैठा लेगी तो इसे तस्सली हो जायेगी। बुढ़िया माई ने लड़के को आंवा में बिठाकर उसके चारों तरफ जौ के दाने से गोला बना दिया और उसके हाथ में सुपारी देकर कहा कि वह अपनी आंखें बन्द कर के ॐ गणेशाय नमः का जाप करता रहे। फिर सिपाहियों ने आंवा बंद कर उसमें आग लगा दी।
जैसे तैसे रात बीती। सुबह चार बजते ही बुढ़िया माई सिपाहियों से आंवा खोलने की जिद करने लगी। सिपाहियों ने उसे दुत्तकार कर कहा कि जाओ अभी आंवा खोलने का समय नहीं हुआ है बाद में आना। लेकिन फिर एक सिपाही को उस पर दया आ गई बोला कि खोल दो आंवा बेचारी अपने लड़के की राख लेकर चली जायेगी। सिपाहियों ने जैसे ही आंवा खोला तो सबकी आंखें चुंधिया गईं। आंवे के सारे बर्तन सोने और चांदी के हो गए थे और बुढ़िया माई के बेटे के चारों तरफ ऊंची ऊंची जौ की बाली लहरा रही थी और उसके बीच में बुढ़िया का बेटा बैठा हुआ था। सिपाहियों ने बुढ़िया माई को पकड़ लिया और राजा के पास ले गए। राजा ने बुढ़िया से कहा कि तुमने कौन सा जादू टोना किया है जिसकी वजह से तुम्हारा बेटा जीवित बच गया है। बुढ़िया माई बोली कि महाराज मैने कोई जादू टोना नहीं किया है जो भी किया है भगवान ने किया है। उसने राजा को जंगल की सारी बातें बताई तो राजा ने कहा कि वहां पर तुम्हे भगवान ने बचाया था तो यहां आकर भी तुम्हे भगवान बचा लेंगे बुलाओ अपने भगवान को। राजा ने अपने पैरों में फूलों की बेड़ियां डलवा लीं और बुढ़िया माई के पैरों में लोहे की बेड़ियां डलवा दीं और कहा कि वह अपने भगवान से कहकर दोनों की बेड़ियां बदल दे तो वह उसकी सच्चाई को स्वीकार कर लेंगे।
बुढ़िया माई रो रो कर भगवान को याद करने लगी कि हे भगवान! जैसे आपने मेरे बेटे के प्राण बचाए हैं, उसी प्रकार मेरी सच्चाई को भी साबित कर दीजिए। समय बीतता गया और बुढ़िया माई वैसे ही रो रो कर भगवान से प्रार्थना करती रही। सब लोग बुढ़िया माई की हंसी उड़ाने लगे कि कहीं भगवान भी धरती पर आते हैं। उसी समय आकाश में बहुत भयंकर गर्जना के साथ बिजली चमकी और राजा के पैर से फूलों की बेड़ियां निकल कर बुढ़िया माई के पैरों में पड़ गईं और बुढ़िया माई के पैरों से लोहे की बेड़ियां निकल कर राजा के पैर में पड़ गईं। राजा बुढ़िया माई के पैरों में गिर पड़ा और उसके बाद से कभी भी आंवा में बलि ना देने का प्रण लिया। आंवा में अब सारे बर्तन साबूत निकलने लगे थे। राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करा दी कि आज के बाद फिर कभी भी किसी की बलि नहीं दी जाएगी।
हलषष्ठी मैया जी कृपा से जैसे बुढ़िया माई के दिन बहुरे वैसे ही सबके बहुरे! बोलो हल छठ माता की जय!